जीवन-सम्बन्धी आलेख

 


 

देश के, राज्य के, शहर के अत्र्हवा गाँव के, किसी भी रास्तों पर सफ़र करते हैं तब देखते हैं कि बहुत सारे मोड़ ऊपर दिशाएं

बदलती रहती हैं. ठीक इसी तरह, जीवन की सफर पर हम निकलते हैं तो जीवन की राहें भी दिशाएँ बदलती रहती है. जहाँ

पहुंचना चाहा था, वहाँ नहीं, लेकिन किसी और मुकाम पर ही जिंदगी ले जा कर हमें छोडती है.

“हम यहाँ क्यों आये हैं?, हमें क्या करना है? इस धरती के ऊपर हमारा दुसरे मानव-संबंधों के साथ क्या नाता है? यहाँ से

हमें कहाँ जाना है?, जाने के पहले क्या कर के जाना है?” जैसे प्रश्नों के उत्तर हमें पता नहीं है, ईन सब प्रश्नों के बीच “ खुद मैं

कौन हूँ ?”, जैसे सवालों के उत्तरों की खोज मे हमने कितने जन्मों का सफ़र बिना कुछ पाए, बिना कुछ जाने, ऐसे ही बीता

दिया. जहाँ भी जाते हैं, शोरो-गूल, असमंसज, चहल-पहल, अशांति, मनकी घुटन और दू:ख महेसूस करते रहे. जिस सुख

और शान्ति के खोज मे हम निकले थे वे कहाँ और कब मिलेगी उसका भी कोई पता नहीं.

जीवन की अनगिनत राहों पर चलते चलते, मन मे उठती हुई ऐसी घुटन और दिमाग़ में उठते हुए प्रश्नों के उत्तर सीधी सादी

भाषामे और सरल तरीके से सामझने के लिए हमें जीवन की इन गलिओं से गुज़रना ही होगा. इस सफर मे हम जो देखेंगे, सुनेंगे,

जो करेंगे और इन सबका विश्लेषण करेंगे तब जाकर अपने खुद के अनुभव से हम जीवन की सफर को अर्थपूर्ण बना सकेंगे. इस

विभाग मे सम्मलित किये हुए आलेखों के ज़रिये हम अपने जीवन को बराबर समझ पाएंगे.


माँ की  बहुत याद आती है...

Feb 16, 2024 12:29 PM, हरीश पंचाल 'ह्रदय'

पश्चिमी देशोंमें पूरे सालमें एक बार आता हुआ ‘Mothers Day’ हमारी मातृभूमि पर पहले हमने कभी सुना नहीं था. फिर भी हम सब अपनी, अपनी माताओं से एक ही ‘wavelength पर जुड़े रहते आये हैं. रोज़-बरोज़की जिन्दगीमें अक्सर जब, जब माँ घर पर नहीं होती थी तो घर खाली, खाली सा लगता था.

 

हमने कभी भी माँ को शब्दोंमें यह नहीं जताया था कि उसके बगैर घर कितना खाली, खाली महेसूस होता था, फिर भी मनमें हमेशां यह सत्य उभरता रहता था कि माँ के बगैर आधा घंटा भी एक लम्बे युग जैसा प्रतीत होता था.

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हमें इज्जतसे जीना है या शर्मके चुल्लू भर पानीमें डूब के मरना है?

Feb 16, 2024 01:43 PM, हरीश पंचाल 'ह्रदय'

चुनाव आते हैं और जाते हैं, जानेके बाद भी फिर, कई बार आते रहते हैं

वे अपने साथ कुछ अच्छाइयाँ लाते हैं, अधिकतम आक्रोश और अराजकता लाते हैं

पार्टियाँ वादे करती हैं, वादे करनेके पैसे नहीं खर्च होते, लेकिन कौन वादों को निभाता है?

घरोंके दर्वाज़े पर दस्तक देना, दो हाथोंको जोड़ कर चहेरे पर लुभावनी मुस्कानें पहनकर

बड़ी नर्मीसे कहना “हम आपके भलेके लिए ही आये हैं अगर आपका वोट हमें मिल जायें”

वे जाते हैं, थोड़े देरके बाद कई और पार्टियों के उम्मीदवार आते हैं. वही लुभावना अंदाज़,

और कहना “अगर आप हमें जीता दें तो हम बिजली-पानी मुफ्त कर देंगे और पैसे बचायेंगे!

आखरी दिन भी बचे कुचे उम्मीदवार “मुफ्त्मे लेपटॉप और पढाई फी माफ़ करनेका” वादा करते हैं.

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न्याय्की देवी खामोश क्यों है?

Feb 16, 2024 05:41 PM, Harish Panchal ('hriday')

दुनियामे जबसे न्याय प्रणालीका का आरम्भ हुआ तबसे ग्रीक संस्कृति और मान्यता पर आधारित  न्याय की देवीकी आँखें एक काली पट्टीसे बंध है. इक हाथमे तलवार और दूसरे हाथमे तराजू लेकर Lady Justice खड़ी है. अब तक ऐसा माना जाता था कि इन्साफ करते समय न्याय्की देवी ना तो दोस्त देखती थी, ना तो अपराधिकी जात, gender, उम्र, मोभ्भा (status), होद्दा (position), कुछ नही नहीं देखती थी, जो सच्चा निर्णय करनेके बाधारूप बने. जब निष्पक्ष न्याय हो तब तराजू के दोनों पल्ले समतोल (balance) हो जाने चाहिये.  

आज हम जो समयसे गुज़र रहे है वहां  हमारे सबके दिल और दिमागमें यह प्रश्न उठ रहा है कि उन  ऊंचे आदर्शों पर संस्थापित की हुई न्यायकी देवी आज भी निष्पक्ष न्याय कर पाती है क्या? ईश्वरको दिखावे के लिए मंदीरमे जाकर, भेंट चढ़ाकर, बाहार आकर घिनोने काम करते हैं, ऐसे समयमे उस बेचारी न्याय्की देवी को कौन सुनने को तैयार है?

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Co rona पे क्यों रोना’  आया ?

कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया

Feb 16, 2024 06:41 PM, Harish Panchal ('hriday')

फिर अचानक क्या हुआ पूरा जीवन जीने का सबका तरीका बदल गया

कुछ ऐसी बिजली गिरी, किसकी बद-दुआऑ की चिंगारी ऐसी लगी

जो अच्छे-खासे लोगों को महामारिकी आगमे जौंकती रही और फैलती रही

बीमार कई सारे होने लगे लेकिन कई दिनों तक उन्हें बिमारिकी भनक लगी नहीं

तब तक उस महामारिने अच्छे-भले लोगों को जैसे जिन्दा लाशों में तब्दील कर लिया था

ना सांस ले पाते थे, न चलनेकी शक्ति जुटा पाते थे, जिनसे मिलते थे उन्हें शिकार बनाते जाते थे  

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सुबह कभी तो आनी ही है  

Feb 16, 2024 06:55 PM, Harish Panchal ('hriday')

लॉक डाउन के सन्नाटों में सोये शांत शहरों की गलीओमें छाई है उदासी

उन सबमें कभी तो सुनाई पड़ेगी चहल पहल से प्रेरित एक नई संजीवनी.

 

खामोशीमें लिपटी हुई, शहरकी जो बंद दुकानों पर लगे हुए ताले थे,

उन सबके खुल्ले दरवाजे हाथ जोड़ कर हमारा स्वागत कर रहे होंगे.

 

स्मशान जैसी शान्तिमे सोये थे चौराहे, गलीयाँ, स्टेशनें और ओफिसें  

वे सब रास्ते, गाड़ीयां, और स्टेशनों एक नइ रफ्तारसे ट्राफिक जाम कर रहे होंगे.

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हमने चाहा तो था प्यारसे गले मिलते चलें ...

Feb 16, 2024 07:56 PM, Harish Panchal

वो चल रहे थे एक रास्ते पर

हम भी चल रहे थे और रास्ते पर.

दोनों चल रहे थे लेकिन हम एक-दूजे से मिल ना पाये

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आइए, हम सब सुनहरी अक्षरों से हमारे देशका भविष्य लिखें

Feb 16, 2024 08:08 PM, Harish Panchal

हमारी इस मात्रुभूमिने हमें बहुत कुछ दिया है

सबसे ऊंचा मान्वजन्म, जिसने हमें अच्छे विचार करनेकी भेंट दी,

रचनात्मक कार्य करनेकी सोच दी.

कर्म करते रहनेकी सीख दी; और उन कर्मो के कर्तृत्व भावसे दूर रहने की दिशा दिखाई.

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