सुबह कभी तो आनी ही है  

Feb 16, 2024 06:55 PM - Harish Panchal ('hriday')

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लॉक डाउन के सन्नाटों में सोये शांत शहरों की गलीओमें छाई है उदासी

उन सबमें कभी तो सुनाई पड़ेगी चहल पहल से प्रेरित एक नई संजीवनी.

 

खामोशीमें लिपटी हुई, शहरकी जो बंद दुकानों पर लगे हुए ताले थे,

उन सबके खुल्ले दरवाजे हाथ जोड़ कर हमारा स्वागत कर रहे होंगे.

 

स्मशान जैसी शान्तिमे सोये थे चौराहे, गलीयाँ, स्टेशनें और ओफिसें  

वे सब रास्ते, गाड़ीयां, और स्टेशनों एक नइ रफ्तारसे ट्राफिक जाम कर रहे होंगे.

 

वन-जंगल छोडके शहरों का दौरा करने निकले हुए जो वन्य पशुओं गलिओंमें घूम रहे थे,

वे सब शहरोंकी मकानों से भरी गलिओं को छोड़कर अपनी खुल्ली दुनियामे चले गए होंगे.

 

सुबह-शाम, रात और दीन घरोंमें कैद हुए परिवारों के बीच एक तनाव फैला रहता था

वे थोड़े ही दीनोमे एक-दूसरेकी दूरियाँ महेसूस करके पति, बाल-बच्चों का इंतज़ार कर रहे होंगे

 

रोज़ का कमा करके रोजानाके खर्च निकालने वाले, घरों में बगैर राशन और सब्जिको बिलखते थे

वे सब आहिस्ता आहिस्ता कमा कर दो समयके भोजनका कुछ ना कुछ जुगाड़ करने लगे होंगे.

 

जिनकी कम्पनियां बंद होनेके कारण कारीगरों की नौकरी गयी होगी, पता नहीं वे कैसे जी रहे होंगे, वे

एक या दूसरे प्रकारसे कहीं न कहीं स्थायी हो चुके होंगे, ईश्वर ऐसे ही अपने बच्चोंको मरने नहीं देता.

 

सभी आवागमन के साधन बंद होनेसे कितने परिवार बिखर गए थे जो जहां था वहीँ फसे पड़े हुए थे,

ऐसे हालात ज्यादा वक्त रह नहीं सकते, परिस्थिति बदलेगी ही, और सब परिवारसे इकठ्ठा हो पायेंगे.

 

इतिहास गवां है, कई सारे शहर मीट चुके थे, जल-राशिमें विलीन हो चुके थे कई बस्तियाँ उजड़ गई थी,

श्रापित, अत्याचार-पीड़ित भूमि और खंडित शहरोंका विनाश, नए  सर्जंनका निर्माण, प्रकृतिके स्वभाव है.

 

जन्म्के साथ मृत्यु लिखी हुई है, सर्जनके साथ विनाश; स्रुष्टि में ईश्वरको छोड़कर सब कुछ नश्वर है

इस महामारिमे पृथ्वी, बस्तीयाँ, शहर, देश खंडित होना लिखा है तो होने दे, नए सर्जन फिर आयेंगे.

 

पुराने सर्जनों की समाप्ति लिखी है तो उस के बाद आशापूर्ण और भव्य सर्जनका निर्माण भी लिखा है.

अतीतको जा कर वर्त्तमान के लिए जगह बनानी है. और वर्त्तमानको भविष्य का निर्माण करना है.

 

तो हम जहां है, वहीँ ठीक हैं. हमें पता नहीं, लेकिन जो हो रहा है उसके पीछे कुछ रचनात्मक हो रहा है

ईश्वर हमारे लिए नया घर, नया शहर, नयी दुनिया बना रहा है जो कभी ना कभी हमें रास आने लगेंगे.

 

इस महामारिमे जो दुनिया छोड़ कर चल बसे हैं, वे नया शरीर, नाम और रूप ले कर फिर आयेंगे. जीवनकी एक नई सफ़र शुरू करेंगे. जिनसे हमारी लेन-देन बाकी थी वे सफरमे फिर हमारे साथ हो लेंगे.

 

आखरी कुछ महिनोमे दुनियामे जो अन्धेरा छाया है उस सफरमें आशा और प्रगतिकी नै रोशनी दिखेगी

जिन रास्तों पर मोदीजी हमें ले जा रहे हैं, वहां अँधेरा नहीं होगा क्यों कि “सुबह कभी तो आनी ही है .”

 

ह्रदय-स्पर्श (ह्रदय)

आइए, हम सब सुनहरी अक्षरों से हमारे देशका भविष्य लिखें

Feb 16, 2024 08:08 PM - Harish Panchal

हमारी इस मात्रुभूमिने हमें बहुत कुछ दिया है

सबसे ऊंचा मान्वजन्म, जिसने हमें अच्छे विचार करनेकी भेंट दी,

रचनात्मक कार्य करनेकी सोच दी.

कर्म करते रहनेकी सीख दी; और उन कर्मो के कर्तृत्व भावसे दूर रहने की दिशा दिखाई.

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Co rona पे क्यों रोना’  आया ?

कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया

Feb 16, 2024 06:41 PM - Harish Panchal ('hriday')

फिर अचानक क्या हुआ पूरा जीवन जीने का सबका तरीका बदल गया

कुछ ऐसी बिजली गिरी, किसकी बद-दुआऑ की चिंगारी ऐसी लगी

जो अच्छे-खासे लोगों को महामारिकी आगमे जौंकती रही और फैलती रही

बीमार कई सारे होने लगे लेकिन कई दिनों तक उन्हें बिमारिकी भनक लगी नहीं

तब तक उस महामारिने अच्छे-भले लोगों को जैसे जिन्दा लाशों में तब्दील कर लिया था

ना सांस ले पाते थे, न चलनेकी शक्ति जुटा पाते थे, जिनसे मिलते थे उन्हें शिकार बनाते जाते थे  

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हमने चाहा तो था प्यारसे गले मिलते चलें ...

Feb 16, 2024 07:56 PM - Harish Panchal

वो चल रहे थे एक रास्ते पर

हम भी चल रहे थे और रास्ते पर.

दोनों चल रहे थे लेकिन हम एक-दूजे से मिल ना पाये

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न्याय्की देवी खामोश क्यों है?

Feb 16, 2024 05:41 PM - Harish Panchal ('hriday')

दुनियामे जबसे न्याय प्रणालीका का आरम्भ हुआ तबसे ग्रीक संस्कृति और मान्यता पर आधारित  न्याय की देवीकी आँखें एक काली पट्टीसे बंध है. इक हाथमे तलवार और दूसरे हाथमे तराजू लेकर Lady Justice खड़ी है. अब तक ऐसा माना जाता था कि इन्साफ करते समय न्याय्की देवी ना तो दोस्त देखती थी, ना तो अपराधिकी जात, gender, उम्र, मोभ्भा (status), होद्दा (position), कुछ नही नहीं देखती थी, जो सच्चा निर्णय करनेके बाधारूप बने. जब निष्पक्ष न्याय हो तब तराजू के दोनों पल्ले समतोल (balance) हो जाने चाहिये.  

आज हम जो समयसे गुज़र रहे है वहां  हमारे सबके दिल और दिमागमें यह प्रश्न उठ रहा है कि उन  ऊंचे आदर्शों पर संस्थापित की हुई न्यायकी देवी आज भी निष्पक्ष न्याय कर पाती है क्या? ईश्वरको दिखावे के लिए मंदीरमे जाकर, भेंट चढ़ाकर, बाहार आकर घिनोने काम करते हैं, ऐसे समयमे उस बेचारी न्याय्की देवी को कौन सुनने को तैयार है?

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हमें इज्जतसे जीना है या शर्मके चुल्लू भर पानीमें डूब के मरना है?

Feb 16, 2024 01:43 PM - हरीश पंचाल 'ह्रदय'

चुनाव आते हैं और जाते हैं, जानेके बाद भी फिर, कई बार आते रहते हैं

वे अपने साथ कुछ अच्छाइयाँ लाते हैं, अधिकतम आक्रोश और अराजकता लाते हैं

पार्टियाँ वादे करती हैं, वादे करनेके पैसे नहीं खर्च होते, लेकिन कौन वादों को निभाता है?

घरोंके दर्वाज़े पर दस्तक देना, दो हाथोंको जोड़ कर चहेरे पर लुभावनी मुस्कानें पहनकर

बड़ी नर्मीसे कहना “हम आपके भलेके लिए ही आये हैं अगर आपका वोट हमें मिल जायें”

वे जाते हैं, थोड़े देरके बाद कई और पार्टियों के उम्मीदवार आते हैं. वही लुभावना अंदाज़,

और कहना “अगर आप हमें जीता दें तो हम बिजली-पानी मुफ्त कर देंगे और पैसे बचायेंगे!

आखरी दिन भी बचे कुचे उम्मीदवार “मुफ्त्मे लेपटॉप और पढाई फी माफ़ करनेका” वादा करते हैं.

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