अनगिनत जन्मों से हम सब इस पृथ्वीके ऊपर आते रहें हैं. थोड़े वर्षों का जीवन जे कर, बार-बार मरते रहे हैं और फिर ९ महीने अँधेरी जेल से निकल कर और भी ज्यादा परेशान होने और कई प्रकारके दू:खोंसे व्यथित होकर मरते रहे हैं . फिर भी आते रहे हैं. यही क्रम युगों से चलता आया है . लेकिन यहाँ आने की बाद, जन्म और मृत्युके बीचकी सफ़र के दरम्यान हमें क्या करना है, जीवनका क्या उद्देश है, इस उद्देशको परिपूर्ण करनेके लिए हमारी जीवनशैली कैसी बनानी चाहिए, हमें क्या हांसिल करना चाहिए, किन वस्तुओंका, किन प्रथाओंका, किन परम्पराओंका त्याग करना चाहिए इन सब मूल्योंका ज्ञान होना आवश्यक है. भगवद गीता ही ऐसा पर्याय प्रदान करती है. हमारे रोज़ -बरोज़ के जीवन-क्रममे हम इसका थोडा-थोडा अध्ययन करते रहें और इसको ‘गीतामय’ बनाएं तो जीवनकी समस्याओंका सुझाव मिलते रहेंगे. “सिर्फ हमारे भाग्य्मे ही सब कठीनाइओं क्यों आती रहती है” ऐसे मिथ्या प्रश्नों हमारे दिमागमे नहीं उठे.