दिलोंकी दीवारोंसे
तन्हाइओंकी दीवारोंसे
प्रकृतिके सागरकी तरफ
तन्हाइओंकी दीवारोंपर
गीले दिलके शिकवे लिखना
अच्छा लगता है
फिर उन्ही दीवारोंके सामने बैठकर
हर शिकवेको दोहराते रहना
अच्छा लगता है
दोहराते दोहराते, उन्ही दीवारोंके सामने
बैठ कर आँसू बहाते रहना
अच्छा लगता है
“मेरे शिकवों पर तुम्हे रोना नहीं आता?”
उन खामोश दीवारोंको ऐसा पूछते रहना
अच्छा लगता है
दीवारें बेजान, दील माय्युस, और भीगी हुई है आँखें,
उन तीनोंकी गमगीनीओं से उठती हुई आहें,
पीते रहना अच्छा लगता है.
तुमसे मिले हुए एक मुदत गुज़री थी, मेरे हमदम, और जुदा हुए एक युग,
फिर भी लगता है जैसे कई सालोंके अफसाने कल ही गुज़रे हों,
उन बीती यादोंकी गलियोमें घुमते रहना अच्छा लगता है.
बचपनसे हम दोनोंको प्यार और चाहत थी एक दुजेसे बेहद,
एक जान-दो बदन थे, तो फिर हम बीच दीवारें कैसे उठी,
यह सोच-सोच कर रातें बीताना अच्छा लगता है.
एक-दुजेके कदमों के निशानों पर चलते रहे थे हम,
तो साथ क्यों छुटा, हाथोंसे हाथ क्यों छुटे, और दिल क्यों टूटे,
ईन्हीं सवालोंकी भूल-भूलईओंमें खोये रहना अच्छा लगता है.
साथ मिलकर सात फेरोंमें हमने सात जन्मों तक साथ चलनेकी ली थी जो कसमें,
उन कसमोंको और हमारी चाहतोंको भूलाकर तुम कैसे रह पाई होगी,
ईन विचारोंमे खो कर पागल होना अच्छा लगता है.
ना घरमे, ना बहार, ना काम पर, ना दीनमें, ना रातमे लगता है अब दिल मेरा,
अमीर था मैं, दिलमे भरे पड़े तुम्हारे ही खाजानेसे, अब खाली दिलसे हूँ एक फ़क़ीर,
उस फ़क़ीरी दिलसे उठती हुई दुआओंमें घूमते रहना अच्छा लगता है.
जीवन तो है काफी शेष, पर ना तुम, ना तो तुम्हारा साथ, उसका है सबसे बड़ा खेद,
तुमसे ही तो जीवन था, अब ना तो मिलकियत, ना कोई बंगले-गाडीका मोह,
बस आपसकी दीवारें तोड़कर तुम लौट आओ ऐसी दुआओं मे जीना अच्छा लगता है.
जीते जीते जब ऊपर लौटनेका समय आये तब तुम रूकना मेरे लिए, मैं रुकुंगा तुम्हारे लिये,
मेरे घर अब भले ही ना आओ लेकिन आ जाना जब तुम्हारा बुलावा आये, तब हम साथ चलेंगे,
तब दो अर्थियां एक साथ जलेगी, दो आत्माएं एक साथ चलेगी, ऐसी दुआएं करना अच्छा लगता है.
जीते जी, दिलों की दीवारें जो हमने बनायी थी, उन्हें तोड़ कर, तनहाईकी दीवारों को तोड़कर चलेंगे.
यही तो था मकसद जीवनका, सुखमे और दुखमे साथ निभाना, जीवन-मृत्युकी सफरमे भी साथ रहना,
साथ जियेंगे, इन्सानियतकी खुशबु फैलायेंगे और जीनेकी मिशाल छोड़ जाएंगे बस, यही अच्छा लगता है .
प्रकृतिकी नदियाँ बहती हुई निर्मल रहती है और सागरमे समा कर पूर्णताको प्राप्त करती है ,
क्यों ना हम भी हमारे जीवनकी नदियोंको बहने दें और प्रकृतिके सागरमे प्रेमसे लिप्त हो जायें,
प्राणों और प्रकृतिका मिलन कितना निर्मल होता है, बस यही सोच कर अच्छा लगता है.
दिया जलता रहे साल भर
२०७६ के नए वर्षकी ये सभी शुभ कामनाएं
आप सभी के लिए साकार हों ऐसी प्रार्थना.
“सत्य मेव जयते”
हम जहाँ पले, बडे हुए, पढ़े, कमाए, परिवार बनाया, ज्ञान पाया,
यही धरती हमारी मा है, पिता है, गुरु है और ईश्वर भी है,
जो यहाँ नहीं जन्मे थे, वे आये, उन्हें भी इसी धरती ने सहारा दिया,
चलो, हम हो लें उनके साथ, करे जो कृष्णके के जैसी बात
जिस देशके प्रधान मंत्री पहले दुनियाकी बड़ी कोन्फरंसमें हाथ बाँधकर, मौन हो कर खड़े रहते थे
आज हमारे प्रधान मंत्री की दहाड़ और मार्गदर्शनके पीछे दुनियाको एक नई दिशा दिखती है.
आज हम इतना ऊपर उठ चुके हैं कि हम ‘Super Powers’ की कक्षामें आ चुके हैं.
अब हमें नीचे नहीं गिरना है. हमने ‘विकासकी मशाल’ पकड़ी है , जो सबको राह दिखानी है
मैं चिंगारी हूँ
“चिंगारी” !
मैं सिर्फ तीन अक्षरों का एक शब्द हूँ.
मैं क्या, क्या कर सकती हूँ उसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते.
मेरे रहने के बहुत सारे मुकाम हैं.
मैं जब शांत होती हूँ तब मुझे कोई देख भी नहीं पाता.
मेरे कई रूप है. मैं जब दिखती हूँ तो जलते हुए छोटे बिंदु के रूप में होती हूँ
मुजे कोई हवा दे दे, कोई परेशान करे तो मैं ज्वाला का रूप धारण करती हूँ.
महामारीमे आइये, हमारे अंदर परमात्मासे संपर्क करें
इस दुनियामे लोग अच्छे भी हैं, बुरे भी हैं
कोई बहुत ही अच्छे हैं तो कोई अनहद बुरे हैं
अच्छाई जब बुलंदीओं को छू ले तो वे ईश्वरकी इबादत होती है
जब बूराई अपनी सीमा छोड़ देती है, वे सारी दुनियामें तबाही फैलाती है
हमने आध्यात्मकी और तत्वज्ञानकी कई किताबों में पढ़ा है
की खराब कर्म करने वाले राक्षश योनिमे जन्म लेते हैं
लेकन हमने देखा है वे जन्म तो मनुष्य योनिमे ही लेते है
लेकिन कर्म राक्षसों जैसे करते हैं, जैसे निर्भयाके कातिलोंने कर दिखाये.
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