चलो, हम हो लें उनके साथ, करे जो कृष्णके के जैसी बात
हिन्दी केलेंडरके अनुसार हम विक्रम संवत २०७९ के वर्षमें प्रवेश कर चूके हैं.
हमारे देशकी आत्मा को चिरायु करनेका आह्वाहन हम कर चुके हैं,
गरीब और सामान्य प्रजाके हीतमें कई सारी योजनाएं बनाकर
जिन्होंने जीनेका उत्साह बढाया,
आवन-जावन, परिवहन, और व्यापार – रोजगारके के माध्यमोंको
मजबूत बनाकर जिन्होंने देशको ऊपर उठाया,
जब दुनियामें हमारे देशका कोई मान-सन्मान नहीं था, वहाँसे ऊपर उठाकर
जिन्हों ने भारतको विश्वमें उस ऊंचाई तक पहुंचाया जहाँ भारतकी मिसाल दी जाती है.
जिस देशके प्रधान मंत्री पहले दुनियाकी बड़ी कोन्फरंसमें हाथ बाँधकर, मौन हो कर खड़े रहते थे
आज हमारे प्रधान मंत्री की दहाड़ और मार्गदर्शनके पीछे दुनियाको एक नई दिशा दिखती है.
देश-हीत के बहुत सारे क्षेत्रोंमें पहले हमें दुनियाके देशों के पास हाथ फैलाने पड़ते थे.
आज हम बड़े गौरवसे अपने हथियार, tanks, trains, cars , phones, gadgets खुद बनाते हैं.
यहाँ तक कि हमारे देशमे बनाए हुए हथियार और अन्य सामान, विश्वके दुसरे देश भी खरीदने लगे हैं.
हमने कोरोनाके अलावा, और भी कई सारी, अक्सीर दवाएं दुनियाके देशोमें पहुंचाई है.
आज हम इतना ऊपर उठ चुके हैं कि हम ‘Super Powers’ की कक्षामें आ चुके हैं.
अब हमें नीचे नहीं गिरना है. हमने ‘विकासकी मशाल’ पकड़ी है , जो सबको राह दिखाती है.
हमें और ऊपर उठना है और लोगोंका तथा देशों का हाथ पकड़ कर आगे ही चलते रहना है
उस ऊंचाई तक जाना है, जहां कोई दुश्मन ना हो, किसीके प्रति घृणा ना हो बस प्यार ही प्यार हो.
आइये, आगे हम उन्हींके हाथमें देशकी लगाम दें जिन्हें ईश्वरने अपना मसीहा बनाकर हमारे बीच भेजा है,
जिसे ना खुदकी फ़िक्र है, ना पैसोंका मोह है, न सत्ताकी लालसा है, उन्हें सिर्फ अपने देशको ऊपर उठाना है
तो चलो, हम हो लें उनके साथ, करे जो कृष्णके जैसी बात
हमारी स्वर्ण, सनातन संस्कृतिका सदा बना रहे प्रभात
दिलोंकी दीवारोंसे
तन्हाइओंकी दीवारोंसे
प्रकृतिके सागरकी तरफ
तन्हाइओंकी दीवारोंपर
गीले दिलके शिकवे लिखना
अच्छा लगता है
फिर उन्ही दीवारोंके सामने बैठकर
हर शिकवेको दोहराते रहना
अच्छा लगता है
दोहराते दोहराते, उन्ही दीवारोंके सामने
बैठ कर आँसू बहाते रहना
अच्छा लगता है
आइए आज थोडा सा दुःख मांग लें
शायद इस लिए कि आत्माका मूल स्वभाव ही सुख है
‘सत्, चित्त और आनंद’ ये ही आत्माके मूल तत्त्व है
आज भी हमारी प्रार्थनाओं में सुख की मांग ही होती है.
मानव जीवनमे हर जगह, हर समय सुख ही सुख हो यह मुमकीन नहीं.
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय
आज गुरु-पूर्णीमाँ का पवित्र दिवस है.
आईए, हमारे सबके अंतरात्मा में बैठे हुए
‘परम गुरु’ को हम प्रणाम करें,
और संत कबीरजीकी पंक्तियाँ उन्हें सुनाएं”
चाहना की चाहत में सारा जीवन गंवाया
खुद अपनेमे ही झाँक कर नहीं देखा
सोचा था इश्वर ऊपर रहेता है वहांसे वह सब देखता होगा,
तो उसे यह फ़रियाद पहुंचाई “बता, तेरी दुनियामें चाहत कहाँ है?”
तो दिलके अंदरसे आवाज़ उठी “मैं चाहतका खजाना ले कर तेरे अंदर ही बैठा हूँ”
सारी दुनियामें खोजनेके बजाय तूने खुदको चाहा होता तो दुनियाकी चाहत तुजे मिल चूकी होती”
आइए हम सब हमारे भिष्म पितामहके साथ हो लें
कोई एक ऐसी हस्ती कई युगोंके बाद, कई सालोंके बाद इस पृथ्वी पर जन्म लेती है
जिसकी सोच इतनी गहेरी, ऊंची और इतनी गहन होती है जो सभी मुश्किलोंके सुझाव ला सके,
जिसकी निर्णायक शक्ति इतनी तेज़, इतनी सही दिशामे होती है, और कभी डगमगाती नहीं,
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