बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय
आज गुरु-पूर्णीमाँ का पवित्र दिवस है.
आईए, हमारे सबके अंतरात्मा में बैठे हुए
‘परम गुरु’ को हम प्रणाम करें,
और संत कबीरजीकी पंक्तियाँ उन्हें सुनाएं”
“गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।
गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।।
गुरू पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।”
ताकि जब हमारे कर्मफल समाप्त होंगे
और पून्योंका उदय होगा तब वे ही हमें
परम गुरु ‘परमात्मा’से मिलायेंगे
आइये, हम भी अपनी Private Bank बनायें
(सोचिये हम कहाँ जा रहे हैं !)
जीवनमे अमीर होना है तो अपना बैंक खोलो
पांचसौ, हज़ार, लाख, दस लाख को छोडो
लालसाओं को ऊंची रखो, करोड़ों की सोचो
नौकरी में क्या रखा है, लोगों को नौकर रखो
खुदको बड़ा दिखानेको औरों को नीचा दिखाओ
फ्रेंड्स बनाओ, अपना सर्कल बढाओ, नेटवर्क बढाओ
यह क्या जगह है दोस्तों, यह कौनसा मुकाम है ..
अहम्, कामनाएं, लालच ने मिलकर पुरखों के दिये संस्कारको रोंदा
सब के ऊपर राज करने निकले थे हम, लेकिन खुद को ही गवाँ बैठे
यह क्या जगह है दोस्तों, यह कौन सा मुकाम है ..
अहम्, कामनाएं, लालच ने मिलकर पुरखों के दिये संस्कारको रोंदा
सब के ऊपर राज करने निकले थे हम, लेकिन खुद को ही गवाँ बैठे
२०२० की सुबहमे आइए, हम एक-जूट हो जायें
२०२० के नये सालकी
चौकट पर हम आ खड़े हैं.
हमारा धेयेय क्या है,
हमें कहाँ जाना है,
उनका इंतज़ार आज भी है
हमारी जिंदगीके ये रास्ते, जिन पर हम चल रहे हैं
उसके हर कदम ऊपर हमारे साथी एक के बाद एक हमसे बिछड़ते जा रहे हैं
ये वोह साथी थे जिनके साथ हमने कोई ख़्वाब देखे थे, कुछ वादे किये थे
उन्हें हमारे दिलकी गहराईके गुलशनसे प्रेमके कुछ फूल तोडके दिए थे
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