आइये, हम भी अपनी Private Bank बनायें
(सोचिये हम कहाँ जा रहे हैं !)
आइये, हम भी अपनी Private Bank बनायें
जीवनमे अमीर होना है तो अपना बैंक खोलो
पांचसौ, हज़ार, लाख, दस लाख को छोडो
लालसाओं को ऊंची रखो, करोड़ों की सोचो
नौकरी में क्या रखा है, लोगों को नौकर रखो
खुदको बड़ा दिखानेको औरों को नीचा दिखाओ
फ्रेंड्स बनाओ, अपना सर्कल बढाओ, नेटवर्क बढाओ
छोटे से शुरू करो, चिट फंड खोलो, एजंसी खोलो
उधारकी सच्चाइसे लोगों में खुदकी बुलंदी फैलाओ
गाडी खरीदो, घर खरीदो लेकिन औरों को बर्बाद करके
करोडोंकी कम्पनी बना कर, स्टोक-एक्षेंजमें लिस्टिंग कराओ
आगे बढ़ो, प्रायवेट बैंक खोलो, चाँद तारे दिखाकर कस्टमर बढाओ
ऊंचे दरों पर FD देते जाओ, बैंक की बेलेंस बढाते जाओ
चार-पांच पीढीओं बैठके खा सके इतना - हज़ारों करोडों दबाते जाओ
बिजनेस के नाम पर गोलमाल करनेवाली कम्पनिओं को लोन देते जाओ
उन्हें दी हुई लोन में से अपने रिश्तेदारोंमें, उनकी कम्पनीओंमें इन्वेस्ट कराते जाओ
ये सब उलटा-सुलटा करते रहो, NPA बढाते रहो जब तक बैंकका asset डूबने लगे
और फिर खामोशी से विदेश चले जाओ या फिर ऐसा दिखाओ कि तुम्हारी बैंक डूब गई
फिर चलेगा एक लम्बे दौरकी पूछताछ, और बिछेगी
पुलिसों, RBI, ED और मिनिस्टरोंके बयानों की जाल
और तुम बैठे होंगे विदेशकी कोई क्लबमे
अथवा पुलिसों या कोर्ट-कचहरी के कमरों में.
लेकिन तुम्हारी आनेवाली पीढीओंके लिए
एक बहुत तगड़ी पूँजी इकठ्ठी हो गई होगी.
तो आइये, हम भी अपनी Private Bank बनायें ....
यह क्या जगह है दोस्तों, यह कौनसा मुकाम है ..
अहम्, कामनाएं, लालच ने मिलकर पुरखों के दिये संस्कारको रोंदा
सब के ऊपर राज करने निकले थे हम, लेकिन खुद को ही गवाँ बैठे
दिलोंकी दीवारोंसे
तन्हाइओंकी दीवारोंसे
प्रकृतिके सागरकी तरफ
तन्हाइओंकी दीवारोंपर
गीले दिलके शिकवे लिखना
अच्छा लगता है
फिर उन्ही दीवारोंके सामने बैठकर
हर शिकवेको दोहराते रहना
अच्छा लगता है
दोहराते दोहराते, उन्ही दीवारोंके सामने
बैठ कर आँसू बहाते रहना
अच्छा लगता है
२०७७ का नया साल हमारी प्रतीक्षा कर रहा है
आइए कुछ अंधेरों से हम नए सालके उजालों में प्रवेश करें
हम ने चलना सिखा था, चलते गिरना सिखा था,
हम ने चलना सिखा था, चलते गिरना सिखा था,
गिरके संभलना सिखा था और गिरके उठे तो
आसमान में उड़ना भी सिखा था
वसुधैव कुटुम्बकम
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय
आज गुरु-पूर्णीमाँ का पवित्र दिवस है.
आईए, हमारे सबके अंतरात्मा में बैठे हुए
‘परम गुरु’ को हम प्रणाम करें,
और संत कबीरजीकी पंक्तियाँ उन्हें सुनाएं”
{{commentsModel.comment}}