उनका इंतज़ार आज भी है
हमारी जिंदगीके ये रास्ते, जिन पर हम चल रहे हैं
उसके हर कदम ऊपर हमारे साथी एक के बाद एक हमसे बिछड़ते जा रहे हैं
ये वोह साथी थे जिनके साथ हमने कोई ख़्वाब देखे थे, कुछ वादे किये थे
उन्हें हमारे दिलकी गहराईके गुलशनसे प्रेमके कुछ फूल तोडके दिए थे
उनकी महेरबानीयाँ भी हमने कबूल की थी.
लेकिन दुनियाके रास्तों पर एक ऐसा मोड़ क्या आया कि
हम, हम ना रहे, और वे वे ना रहे, सब कुछ बिखर गया
आज जब हम अपने ही ग़मगीनी के चौराहे पर बैठे हैं,
तो उनकी याद क्यों इतनी सताती है कि दिलकी गहराईसे यह गीत निकलता है :
“किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है ...”
https://www.youtube.com/watch?v=j8qtywZ6L70
‘जीवन-मूल्यों’ जैसी कोई चीज़ बाकी बची है क्या ?
जीवन कि सिढियो से प्रगति की ऊन्चाइऑ को हांसिल करने के बजाय, हम दिन-प्रतिदीन नीचे और नीचे ही गिरते जाते हैं. पीढ़ीओं से गिरे हुए जिन संस्कारों के साथ हम नया जन्म ले कर आते हैं, वे निम्नतर संस्कार प्रत्येक जन्म में और नीचे गिरते रहते हैं. जीवनके मूल्यों का अवसान हो चूका है और फिर भी हम हमेशां मरते रहते हैं, जब भी कोई बुरी सोच को पालते हुए निंदनीय कार्य करते हैं. ऊपर से नीचे तक सब गिरे हुए हैं.
जीवनकी संध्या समयमें
जीवनकी संध्या समयमें ,आइये, हम
अपना बोज हल्काकरते हुए
आइए हम सब हमारे भिष्म पितामहके साथ हो लें
कोई एक ऐसी हस्ती कई युगोंके बाद, कई सालोंके बाद इस पृथ्वी पर जन्म लेती है
जिसकी सोच इतनी गहेरी, ऊंची और इतनी गहन होती है जो सभी मुश्किलोंके सुझाव ला सके,
जिसकी निर्णायक शक्ति इतनी तेज़, इतनी सही दिशामे होती है, और कभी डगमगाती नहीं,
एक तरफ महिलाएं और एक तरफ स्वामी
हरे राम, हरे राम; राम राम हरे हरे,
एक बड़ी समस्या लेकर आये पास तेरे .
हमारी कुछ सुलज़ा दे उलज़न; आज किसे हम करें नमन
सारे विश्वकी महीलाओं या महर्षि दयानन्द ?
“सत्य मेव जयते”
हम जहाँ पले, बडे हुए, पढ़े, कमाए, परिवार बनाया, ज्ञान पाया,
यही धरती हमारी मा है, पिता है, गुरु है और ईश्वर भी है,
जो यहाँ नहीं जन्मे थे, वे आये, उन्हें भी इसी धरती ने सहारा दिया,
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