“सत्य मेव जयते”
“सत्य मेव जयते”
हमने जहाँ जन्म लिया वही धरती हमारी मा है,
हमें जन्म देनेवाली मा भी इसी धरती पर जन्मी होगी.
हम जहाँ पले, बडे हुए, पढ़े, कमाए, परिवार बनाया, ज्ञान पाया,
यही धरती हमारी मा है, पिता है, गुरु है और ईश्वर भी है,
जो यहाँ नहीं जन्मे थे, वे आये, उन्हें भी इसी धरती ने सहारा दिया,
उनमे से कई इसी धरती को कुचलते रहे, बेवफाई करते रहे और जीते रहे,
गैर भूमि पर पैर फैलानेको कई कितने गलत कारनामे अत्याचार करते रहे,
लेकिन हरेक सोच, हरेक कर्म जो नीति-धर्म के खिलाफ होते हैं,
जो दूसरे राह्बरों को परेशान करता है, उनका कायमी अस्तित्व कभी नहीं होता.
कभी ना कभी ऐसे हानिकारक कर्मो का अंत आता ही है,
क्यों कि वे ‘असत्य’ की बुनियाद पर जन्मे थे.
और ‘असत्य’ का कायमी अस्तित्व नहीं, इस लिए कि,
“सत्य मेव जयते” - जीत हमेशा 'सत्य' की ही होती है.
और यही परम सत्य है.
जीवनकी संध्या समयमें
जीवनकी संध्या समयमें ,आइये, हम
अपना बोज हल्काकरते हुए
दिया जलता रहे साल भर
२०७६ के नए वर्षकी ये सभी शुभ कामनाएं
आप सभी के लिए साकार हों ऐसी प्रार्थना.
हम ने चलना सिखा था, चलते गिरना सिखा था,
हम ने चलना सिखा था, चलते गिरना सिखा था,
गिरके संभलना सिखा था और गिरके उठे तो
आसमान में उड़ना भी सिखा था
वसुधैव कुटुम्बकम
मैं चिंगारी हूँ
“चिंगारी” !
मैं सिर्फ तीन अक्षरों का एक शब्द हूँ.
मैं क्या, क्या कर सकती हूँ उसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते.
मेरे रहने के बहुत सारे मुकाम हैं.
मैं जब शांत होती हूँ तब मुझे कोई देख भी नहीं पाता.
मेरे कई रूप है. मैं जब दिखती हूँ तो जलते हुए छोटे बिंदु के रूप में होती हूँ
मुजे कोई हवा दे दे, कोई परेशान करे तो मैं ज्वाला का रूप धारण करती हूँ.
दिलोंकी दीवारोंसे
तन्हाइओंकी दीवारोंसे
प्रकृतिके सागरकी तरफ
तन्हाइओंकी दीवारोंपर
गीले दिलके शिकवे लिखना
अच्छा लगता है
फिर उन्ही दीवारोंके सामने बैठकर
हर शिकवेको दोहराते रहना
अच्छा लगता है
दोहराते दोहराते, उन्ही दीवारोंके सामने
बैठ कर आँसू बहाते रहना
अच्छा लगता है
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