आइए आज थोडा सा दुःख मांग लें
जबसे पृथ्वी ऊपर मानवने जन्म लिया होगा,
तबसे सिर्फ सुख ही सुख उसने माँगा होगा
आपत्तियाँ हो या ना हो, फिर भी सुख ही चाहिए
शायद इस लिए कि आत्माका मूल स्वभाव ही सुख है
‘सत्, चित्त और आनंद’ ये ही आत्माके मूल तत्त्व है
आज भी हमारी प्रार्थनाओं में सुख की मांग ही होती है.
मानव जीवनमे हर जगह, हर समय सुख ही सुख हो यह मुमकीन नहीं.
फिर भी हम मांगते रहते हैं और इसी लिए हम सब दुखी हैं.
तो आइये ईश्वरसे आज थोड़ा सा दुःख मांग कर देख लें,
तब जा कर के हमें पता लगे के दुखमे ही जीवनकी सही पहचान होती है
हम ने चलना सिखा था, चलते गिरना सिखा था,
हम ने चलना सिखा था, चलते गिरना सिखा था,
गिरके संभलना सिखा था और गिरके उठे तो
आसमान में उड़ना भी सिखा था
वसुधैव कुटुम्बकम
२०२० की सुबहमे आइए, हम एक-जूट हो जायें
२०२० के नये सालकी
चौकट पर हम आ खड़े हैं.
हमारा धेयेय क्या है,
हमें कहाँ जाना है,
आइये, हम भी अपनी Private Bank बनायें
(सोचिये हम कहाँ जा रहे हैं !)
जीवनमे अमीर होना है तो अपना बैंक खोलो
पांचसौ, हज़ार, लाख, दस लाख को छोडो
लालसाओं को ऊंची रखो, करोड़ों की सोचो
नौकरी में क्या रखा है, लोगों को नौकर रखो
खुदको बड़ा दिखानेको औरों को नीचा दिखाओ
फ्रेंड्स बनाओ, अपना सर्कल बढाओ, नेटवर्क बढाओ
एक तरफ महिलाएं और एक तरफ स्वामी
हरे राम, हरे राम; राम राम हरे हरे,
एक बड़ी समस्या लेकर आये पास तेरे .
हमारी कुछ सुलज़ा दे उलज़न; आज किसे हम करें नमन
सारे विश्वकी महीलाओं या महर्षि दयानन्द ?
चलो, हम हो लें उनके साथ, करे जो कृष्णके के जैसी बात
जिस देशके प्रधान मंत्री पहले दुनियाकी बड़ी कोन्फरंसमें हाथ बाँधकर, मौन हो कर खड़े रहते थे
आज हमारे प्रधान मंत्री की दहाड़ और मार्गदर्शनके पीछे दुनियाको एक नई दिशा दिखती है.
आज हम इतना ऊपर उठ चुके हैं कि हम ‘Super Powers’ की कक्षामें आ चुके हैं.
अब हमें नीचे नहीं गिरना है. हमने ‘विकासकी मशाल’ पकड़ी है , जो सबको राह दिखानी है
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