मैं ईश्वर हूँ, मै यहीं हूँ,
मैंने अर्जुनको जो वचन दिया था
मैंने अभी तक निभाया था और हमेशां निभाऊंगा
“यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत
अभुथान्म्धार्मस्य तदात्मानं स्रुज्यामहम”
जब जब धर्मकी हानि होती है, अधर्म बढ़ता है,
तब मैं आता हूँ, और अवतार लेता हूँ.
कुरुक्षेत्र की रण भूमि में मैंने यह भी कहा था :
तब भी मैंने इसी लिए ही अवतार लिया था.
“परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे””
“साधू-संतोकी रक्षा के लिए, दुष्टों का विनाश करने के लिए और
समता से धर्मकी स्थापना बनाए रखने के लिए मै हर युग में अवतार लेता हूँ .
मैं आज भी यहीं हूँ और यहीं पर था, ना कोई मुजे देख सका,ना समज सका,
मुझे अवतार लेनेके लिए उचित नहीं यह कलियुग, फिर भी यहाँ मैं मौजूद हूँ हमेशां.
हरेक आत्माकी गहराइओं में मेरा निवास है,
पता नहीं, खुदके अन्दर झाँकने के बदले लोग मुझे बाहर क्यों खोजते होंगे !
मैं निराकार रूपसे निरंतर घुमता रहता हूँ, और कई मसीहों को मैंने जाना है
जो मानव शरीर में होते हुए अपने उच्च कर्मों से खुद ईश्वर जैसी फ़र्ज़ बजाते हैं.
इन्सान होते हुए, औरों का भला करनेके उपरांत देश को ऊपर उठाने में ये लगे हैं.
साधु, संतो, मोदी, योगी, अब्दुल कलाम जैसे लोग, मेरे कार्यक्षेत्रको भी पृथ्वी पर कार्यरत करते रहते हैं.
ये सब खुद मेरे फ़रिश्ते हैं, जिन्हें मैंने चुन चुन कर और तैयार करके ख़ास उद्देश से भेजा है
कलियुगमे अवतार ले कर पृथ्वी पर अब मैं नहीं आता. मेरी मशाल उन्हों ने उठा रखी है.
वे खुद सिर्फ अपने देशको ऊपर उठाने की ही क्षमता नहीं रखते, विश्वके साथ आगे बढ़ना भी उन्हें आता है,
खुद के परिवार को मेरे भरोंसे रख कर अपने देशों को “वसुधैव कुटुम्बकम” की श्रुंखला में उनहोंने जोड़ा हैं.
मेरे सभी गुणों इन फरिश्तों ने अपने जीवनमे उतारे हैं, उनकी हरेक सोचमे मेरी गीता के उपदेश अंकित हैं.
साधू, संत और धर्म गुरुओं गीता पढ़ते, गाते और सूनाते हैं, मेरे ये फ़रिश्ते गीता को जीवनमे जीते जाते है .
लगता है, भगवान् रामचंद्र जैसे वे धर्म-नीतिज्ञ हैं, कृष्ण जैसे राज-नीतिज्ञ और विदुर जैसे स्पष्ट वक्ता,
सिर्फ देश के विपक्षों को ही नहीं, बल्कि परदेशों के चालबाज़ खिलाडीओं को भी काबू में रखना वे जानते हैं.
वे चलते हैं तो शानसे जैसे धरती का गौरव बढाते हों, बैठते हैं तो जैसे राज-गादी की शान बढाई हो
अक्सर खामोश रहने वाले जब बोलते हैं तो हर शब्दका वजन होता है, लगता है जैसे जंगलमे सिंह ने गर्जना की हो .
काम करते रहने के लिए ही जिन्होंने जन्म लिया हो, वे सोते भी है तो नींद भी उन्हें प्यारसे ‘योग-निद्रा’ में सुलाती है ,
और कर्तव्य-निष्ठ आत्मा की जब आँखे खुलती है तब मेरी प्रकृति का सूर्य अपने तेजोमय आशीर्वाद की वर्षा उन पर करता है .
ये वे फ़रिश्ते हैं, जो जीते हैं तो देशके उत्थान के लिए, देशकी प्रजाका जीवन-स्तर ऊपर उठाने,
जीवनकी गरीबी, कठिनाइयों, लोगों की घृणा, अवहेलना जैसे सितमों को उन्होंने खामोशी से झेला है.
किसीने अपना परिवार, संसार और रिश्ते-नाते छोड़े और निकल पड़े थे झोला ले कर, अनिश्चित राहों पर,
कहाँ जायेंगे, कहाँ रहेंगे, क्या खायेंगे, कहाँ सोयेंगे, ना उनको यह कुछ पता था, ना थी भविष्य की कोई खबर.
लेकिन उन्हें मेरी तलाश थी, मुझे जानने के पह्ले, मुझे पा ने के पहले उन्होंने खुद को तलाश लिया था,
वे मेरे बताये हुए सत्य, धर्म और नीतिके रास्तों पर बस वे चल पड़े थे जो आसान काम नहीं था.
ऐसी जो भी आत्माओं को जन्म देकर मैंने पृथ्वी ऊपर भेजा है उन्हें कोई महत्तम कार्यों को फलीभूत करना होता है.
बाल्यावस्था से ही उन्हें अपने जन्मके रहस्य्का ज्ञान होता है और वे संसार के बंधनोको छोड़कर वे निकल पड़ते हैं.
मै ईश्वर हूँ, मैं यहीं हूँ और मेरे ऐसे फरिश्तों के ह्रदयमे ही निवास करता हूँ.मंदिरों में सिर्फ मेरी मूर्तियाँ है.
मैं किसीके कर्मफल के आड़े नहीं आता. लेकिन देशद्रोही और आतंकिओं के पाप सीमा लांघते हैं तब मैं आता हूँ.
भारत जैसे ऊंचे देशों को दुनिया के शिखर पर बिठाने मैं आता हूँ और मेरे फरिश्तोंके ह्रदयमे मुकाम बना लेता हूँ.
अन्दर और बाहरके शत्रुओं से कलुषित हुए महान भारत देशको मुक्त कराने का काम मेरे ही फरिश्तों को सोंपता हूँ.
मेरे लिए यह भी एक धर्म-युध्ध ही है. अधर्मीओं का नाश नहीं होता तब तक मैं अपने मसीहों का सारथी बना रहता हूँ,
तो दुनियावाले, मैं यह घोषणा करता हूँ कि, “मैं खुद ईश्वर हूँ, और यहीं, पृथ्वी के मेरे मसीहों के हृदयमे विराजमान हूँ.”
यह प्रकृति भी मेरी विभूति है. झाड-पान, पर्वतें, नदी नाले, समुद्र, और उनमे आते-जाते तूफ़ान, सब उसका कार्यक्षेत्र है ,
उठते रहते और फिर शांत होते रहते झंझावात और सुनामीयों, और महामारी के बीच प्रकृति अपना समतोलन बनाए रखती है.
मैं ईश्वर हूँ, मैं यहीं हूँ.
मन-मंदिरमे शान्ति की प्रतिमा बिठाएं
जो जीवन-शैलीके साथ जी रहे हैं,
नीतिके जो मार्ग थे उनसे दूर हो चले हैं
औरों के प्रति जो द्वेष-भावसे जी रहे हैं
इसी लिए तो हम सब दू:खी हैं
भगवानकी प्रतिज्ञा
आइए, पहले हम सून लें कि भगवानने हम सबके लिए क्या प्रतिज्ञा की है:
“मेरे मार्ग पर पैर रखकर तो देख,
तेरे सब मार्ग खोल ना दूं तो कहना.
मेरे लिए खर्च करके तो देख,
कुबेरका भण्डार खोल ना दूं तो कहना.
मेरे लिए कडवे वचन सुनकर तो देख,
कृपा ना बरसे तो कहना.
वर्तमानके झोलेमें हमारा योगदान
हमारा हाथ थामकर पहुंचाएगा मोक्ष तक
हमें मिला हुआ जीवन बिताने हम आये हैं यहाँ तो जुछ कर के जायेंगे,
वर्तमानके झोलेमें हमारा योगदान कर के जाएंगे.
कर्तव्यनिष्ठ बन कर नीति, आत्मविश्वास और श्रध्धासे जीते जाएंगे
निराश और हारे हुए लोगोंको उनके हाथ पकड़ कर मानवताके रास्तों पर चलते जाएंगे
“सिर्फ धैर्य-हिन् जीवन जीने” के बजाय, देश, समाज और परिवारोंके लिए कुछ करके जाएंगे
कल हम जन्मे, आज जी लिये और कल गुज़र जायेंगे, तब साथमें क्या ले कर जायेंगे?
इस जीवनके उस पार इंतज़ार कोई कर रहा है हमारा, वोह पूछेगा: “क्या पाया, इस जीवनमे?”
“सिर्फ जी लिये या कुछ हांसिल किया, या फिर आये खाली हाथ?”
इश्वर भी भला ऐसी खिलवाड़ करते हैं क्या?
जब तूने मुझे इस धरती पर भेजा था
तब हाथमे सिर्फ एक पर्चा थमा दिया था.
“तुम्हारे पूरे जीवनकी कुंडली इसमे मिलेगी” तुमने कहा था,
“जैसे जैसे बड़े होते जाओगे, तब पढ़ते रहना” यह भी कहा था.
मैंने चाहा था मेरे पूरे जीवन की कहानी उसमे मैं पढ़ पाउँगा.
लेकिन माँ ने मना किया था: “रोज पढ़ा नहीं करते, ये विधाता के लेख हैं.”
"अहं ब्रह्मास्मि"
ईश्वर के प्रति जिनकी श्रध्धा मजबूत है वे जानते हैं कि हमारे आस पास जो भी हो रहा है उसके पीछे कोई तो मकसद अवश्य है. कोई अपने पूर्व जन्मोंके कर्मों का भुगतान कर रहा है , कोई नए कर्मों की लकीरें खिंच रहा है तो कोई पिछले जन्मोके कर्मों से बाहर आने का तरीका खोज रहा है.
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