भगवानकी प्रतिज्ञा

Dec 28, 2023 10:46 PM - Harish Panchal 'hriday'

394


आइए, पहले हम सून लें कि भगवानने हम सबके लिए क्या प्रतिज्ञा की है:

 

“मेरे मार्ग पर पैर रखकर तो देख,

तेरे सब मार्ग खोल ना दूं तो कहना.

 

मेरे लिए खर्च करके तो देख,

कुबेरका भण्डार खोल ना दूं तो कहना.

 

मेरे लिए कडवे वचन सुनकर तो देख,

कृपा ना बरसे तो कहना.

 

मेरे तरफ आ कर तो देख,

तुझे मूल्यवान बना ना दूं तो कहना.

 

मेरे चरित्रों का मनन कर के तो देख,

ज्ञानके मोती तुझमें भर ना दूं तो कहना

 

मुझे अपना मददगार बनाकर तो देख,

तुम्हें सबकी गुलामीसे ना छुडा दूं तो कहना.

 

मेरे लिए आंसू बहा कर तो देख,

तेरे जीवनमे आनंदका सागर ना बहा दूं तो कहना.

 

मेरे लिए कुछ बनकर तो देख,

तुझे कीमती ना बना दूं तो कहना.

 

मेरे मार्ग पर निकल कर तो देख,

तुझे शांतिदूत ना बना दूं तो कहना.

 

स्वयं को न्योछावर करके तो देख,

तुझे मशहूर बना ना दूं तो कहना.

 

मेरा कीर्तन करके तो देख,

जगतका विस्मरण ना करा दूं तो कहना.

 

तू मेरा बनके तो देख,

हर एक को तेरा ना बना दूं तो कहना.

                  

                                                               (बांके बिहारीजी, वृन्दावन धाम )

 

******************************************************************************************************

 आइये अब ऊपर लिखी हुई “भगवानकी प्रतिज्ञा” की पूर्व भूमि को भी समझ लें:

 

जीवनमें सुख-दुःख तो सबको आते हैं. यही तो क्रम है जीवनका.

फिर भी जब परिस्थिति हमारी सहन शक्तिकी सीमा रेखासे बाहर चली जाती है तब हमारा दिमाग योग्य विचार नहीं कर पाता. जो भी निर्णय लेते हैं वे सब योग्य मार्ग से विपरीत दिशामें हमें ले जाते हैं. छोटी, छोटी बातोंमें हम बिना वजह परिवारके सदस्यों पर और दूसरों पर गुस्सा हो जाते हैं. बेहाल कर देनेवाली परिस्थिति से हम बाहर कब और कैसे आ पायेंगे यही विचार बार बार आते रहते हैं. कई वर्षो पहले मैं जब ऐसे ही माहोलसे गुज़र रहा था तब मुझे हरिद्वार और हृषिकेश जानेका विचार आया. दोनों ही देव-भूमि है तो वहाँ मनको कुछ तसल्ली मिलेगी यह सोच कर मैं पहले हृषिकेश गया.

गंगाजीके किनारे पर एक होटल में उतरा. सुबहमे जल्दी उठकर गंगाजीके तट पर चलने लगा. प्रकृतिकी प्रत्यक्ष नज़ाकत और चेतनाने मुजे छू लिया था. गंगाजीमे स्नान करते हुए यात्री, पूजा-अर्चना करते हुए श्रध्धालु लोग, और गंगाके किनारे से लग कर ऊंचे पथ्थरों पर साधू-संतोंने बनायी हुई  झौपड़ीओं में से उनके मंत्रोच्चार सुनाई रहे थे. मैं ऊपर गया तो देखा अंदाजन २ फूट x ३ फूटकी चटाइसे बनाई हुई  ७-८ झौपड़ीओं में शरीर के ऊपर एक छोटासा वस्त्र पहने हुए साधू अपनी, अपनी झौपड़ीमें ध्यान कर रहे थे. मैं उस पत्थर पर थोड़ा दूर जाकर बैठा. एक-दो साधू बाहर आकर, नीचे गंगाजीमें स्नान करके फिर अपने छोटी सी खोलीमें आये और फिर ध्यानमें बैठ गए. मैं सोच रहा था, मैं अपने अच्छे घरकी आरामदायक जिन्दगीमें अपना जीवन आरामसे जी रहा था फिर भी मुझे कितनी सारी शिकायतें थी, जिनसे भाग कर मैं इतनी दूर हृषिकेशकी पवित्र भूमि में आया था.  इन साधुओं के पास सिर्फ १-२ छोटे वस्त्र थे, एक कमंडल था, और इसके सिवाय उनके पास कुछ भी नहीं था. कितनी सादगी, कितना ऊंचा त्याग, कितना ऊंचा वैराग्य रहा होगा उनका!, ना तो कलकी कोई चिंता, ना तो खाने-पिने की चिंता, ना वस्त्रोंकी परवाह ! जैसे आसमानमें उड़ते हुए परिंदोंको जीने के लिए ईश्वरने बनाई हुई खुली दुनियाके सिवा कुछ भी नहीं चाहिए, वैसे ही ईन साधुओं थे. उनका ख़याल कौन रखता होगा? गंगाजीके किनारे पर उस सुबहमें काफी ठण्ड महेसूस हो रही थी और वे साधुओं तो बस अपने ध्यान में ही मग्न थे. मुझे अपने आप के ऊपर गुस्सा आया. मैं उठा और चलने लगा.

१०-१५ मिनिट चलने के बाद एक बहुत बड़ा शंकर भगवानका मंदीर मैंने देखा और वहीँ मेरे पैर रुके. जूते उतारके मैं अंदर गया. अंदर जाते ही मैं एक प्रकारकी शान्तीका अनुभव करने लगा. शंकर भगवानकी बड़ी, शांत और सौम्य मूर्ती थी. मूर्ती के पहले शिवलिंग था जिस पर श्रध्धालु भक्तजन आ करके पानीका तो कोई दूधका अभिषेक कर जाते थे. मैं मंदिरों में तो अक्सर जाया करता था, लेकिन उस दिन, मनको शांत कर देनेवाली वहाँकी शांतिने मुझे थोडा समय वहीं बैठने के लिए प्रेरित किया. मैं एक कोने में जा कर बैठा. मंदीरकी आध्यात्मक और शांत ऊर्जा मुझे अंदरसे प्रेरित कर रही थी.  मैं आंखें बंद करके ध्यानकी मुद्रामें बैठा. मुझपर भी  तो शम्भुनाथ की करुणा हो जाए तो अवश्य कुछ शांतीका अनुभव कर सकूं उस भावनासे मनमे उनका ही ध्यान करने लगा. इस बीच पता नहीं कब मेरी आँखे नम होने लगी और कब आँखों से पानी बहने लगा उसका अहेसास होते हुए भी अंतर्मनकी भावनाओंको रोकना मैंने उचित नहीं समझा. शांती इतनी थी कि कितना समय बीता होगा उसका ध्यान नहीं रहा. अचानक मेरे बाहिने खंधे पर किसीने हाथ रखा तब जा कर आँखे खुली. वे मंदीर के पुजारी थे. उनहोंने मुझे दो हाथों से खड़ा किया. उनके चहेरे पर  और उनकी आँखों में करुणाकी आभा छाई हुई हो ऐसा मैंने महेसूस किया. मेरे सर पर हाथ रखकर वे बोले:

बेटा, तुम कब से यहाँ बैठे हुए हो और मैं तुम्हें देख रहा था. लगता है तुम कुछ कठिनाईओं से गुज़र रहे हो. मैं जान सकता हूँ कि क्या कारण है?

पता नहीं क्यों, उनके मेरे सर पर हाथ रखनेसे ही मुझे कुछ शांतिका अनुभव हुआ था. उनके चहेरे पर करुणाकी जो आभा छाई हुई थी उसमें मैंने कुछ अपनापनका अहेसास किया. तब मेरे मूंह से आप ही आप जो बातें निकली उसे सून कर ऐसा लगा मानो, जैसे उन्होंने मेरी कुंडली पढ़ ली हो.

तब, मेरा हाथ पकड़कर वे मुझे मंदीरकी  दीवार के बाहर ले गए. उन्होंने मुझे आश्वासनकी जो बातें की, वह मेरे दील की गहेराइयों तक इस तरहसे जा पहुंची जैसे जहाँ दर्द होता हो उसी जगह पर जा कर किसीने ईश्वरके प्रेमका लेप लगा दिया हो. दीवारोंकी बाहरकी साइड उपर कुछ लिखावटें , कुछ सुविचारों की फ्रेम लगी हुई थी. स्वामीजी मुझे एक फ्रेम के पास ले गए. वे बोले” मुझे पता है कि तुम खुद पढ़ सकते हो. लेकिन, फिर भी, मैं तुम्हें इस “भगवानकी प्रतिज्ञा" पढ़कर सुनाना चाहता हूँ. और तब उन्होंने एक, एक लाइन आहिस्ता, आहिस्ता पढ़कर सुनाई.

भगवानकी प्रतिज्ञाको सुनकर मैं ईश्वरकी करुणासे भोर-विभोर हो गया. उस परम पिता परमेश्वरने हम सबको मनुष्य-जन्म दे कर पृथ्वी पर भेजा है, उसके बाद हमें सिर्फ दुनियाकी ठोकरें  खानेके लिए छोड़ नहीं दिया. लेकिन हमारे हर एक कदम पर, हमारी हर एक कठिनाईयों में उनकी करुणा हमारे साथ ही थी लेकिन हम उन्हें समझ नहीं पाए. हम सिर्फ शिकायतें करते रहे. पूजारीजीने मुझे एक कोरा कागज़ ला कर दिया. वे बोले, “बेटा, तुम एक काम करो इस कागज़ पर तुम यह भगवानने कही हुई सभी बातें लिख लो और उसे हमेशां पढ़ते रहना. थोड़े समयके बाद तुम्हें भगवानके प्रति कोई शिकायत नहीं रहेगी, क्यों कि तब उनके लिए तुम्हारी श्रध्धा मज़बूत हो गई होगी.  तो अब मैं चलूँ? तुम्हें भगवान शंकरजी के चरणोंमें छोडके जाता हूँ. अब तुम्हारी सभी शिकायतों का जवाब तुम्हारे पास ही होगा.”

मैंने नीचे झुक कर उनके चरणोंकी रज मेरे सर पर लगाईं, और उन्हें प्रणाम करके ह्रदयसे उनका आभार व्यक्त किया तब उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखकर मुझे आशीर्वाद दिया.

इस बातको आज कई साल गुज़र चुके हैं , लेकिन आज भी उस मंदीरकी दिवार पर लगी हुई “भगवानकी प्रतिज्ञा” से उतारी हुई हस्त्प्रतको को मैंने संभाल कर रखा है और उसे पढता रहता हूँ. आज मैंने सोचा कि उस प्रतिज्ञाने मुझे जो मनकी शांति  दे रखी है उसे आप सभीके साथ बांटूं, जिस से आपके अंत:करणमें भी शान्तिका श्रोत बहता रहे.

मैं ईश्वर हूँ, मै यहीं हूँ,

Jun 03, 2020 07:17 PM - Harish Panchal ('hriday')

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवती भारत

अभुथान्म्धार्मस्य तदात्मानं स्रुज्यामहम”

 

जब जब धर्मकी हानि होती है, अधर्म बढ़ता है,

तब मैं आता हूँ, और अवतार लेता हूँ.

 

कुरुक्षेत्र की रण भूमि में मैंने यह भी कहा था :

तब भी मैंने इसी लिए ही अवतार लिया था.

 

“परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे””

754

Read more

"अहं ब्रह्मास्मि"

Oct 27, 2019 11:49 PM - Harish Panchal - 'Hriday'

ईश्वर के प्रति जिनकी श्रध्धा मजबूत है वे जानते हैं कि हमारे आस पास जो भी हो रहा है उसके पीछे कोई तो मकसद अवश्य है. कोई अपने पूर्व जन्मोंके कर्मों का भुगतान कर रहा है , कोई नए कर्मों की लकीरें खिंच रहा है तो कोई पिछले जन्मोके कर्मों से बाहर आने का तरीका खोज रहा है.

840

Read more

मन-मंदिरमे शान्ति की प्रतिमा बिठाएं

May 07, 2020 10:01 PM - Harish Panchal ('hriday')

जो जीवन-शैलीके साथ जी रहे हैं,

नीतिके जो मार्ग थे उनसे दूर हो चले हैं

औरों के प्रति जो द्वेष-भावसे जी रहे हैं

इसी लिए तो हम सब दू:खी हैं

810

Read more

देवों के देव, महा देव,

जो मौजूद थे जब हम नहीं थे,

Feb 21, 2020 12:29 AM - Harish Panchal - 'Hriday'

कितनी ही पीढियां आती रहे, जाती रहे.

जो बिराजमान है ऐश्वर्य की उस ऊँचाई पर

जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते.

उस परम ‘कल्याण तत्व’ को हम शाष्टांग प्रणाम करें ,

1015

Read more

वर्तमानके झोलेमें हमारा योगदान

हमारा हाथ थामकर पहुंचाएगा मोक्ष तक

Feb 17, 2021 11:59 PM - Harish Panchal ('hriday')

हमें मिला हुआ जीवन बिताने हम आये हैं यहाँ तो जुछ कर के जायेंगे,

वर्तमानके झोलेमें हमारा योगदान कर के जाएंगे.

कर्तव्यनिष्ठ बन कर नीति, आत्मविश्वास और श्रध्धासे जीते जाएंगे

निराश और हारे हुए लोगोंको उनके हाथ पकड़ कर मानवताके रास्तों पर चलते जाएंगे

“सिर्फ धैर्य-हिन् जीवन जीने” के बजाय, देश, समाज और परिवारोंके लिए कुछ करके जाएंगे

कल हम जन्मे, आज जी लिये और कल गुज़र जायेंगे, तब साथमें क्या ले कर जायेंगे?

इस जीवनके उस पार इंतज़ार कोई कर रहा है हमारा, वोह पूछेगा: “क्या पाया, इस जीवनमे?

“सिर्फ जी लिये या कुछ हांसिल किया, या फिर आये खाली हाथ?”

484

Read more

Comments

{{commentsModel.name}}
{{commentsModel.name}}   ADMIN   {{commentsModel.updatets | date: 'MMM d, y h:mm a' : '+0530' }}

{{commentsModel.comment}}

No Comments.