"अहं ब्रह्मास्मि"
अखबारोंमें, TV पर या औरों से सुनी हुई अनुचित अथवा दिमाग को परेशान कर देने वाली खबरों को सुनकर हम चिंतित और नाराज हो जाते हैं. सोचने लगते हैं कि ऐसा ही माहोल रहा तो कैसे जी पायेंगे, शेष जीवन!
लेकिन जिन्हें जीवन जीनेकी कला जच गई हुई होती है वे कभी भी, कोई भी हालातमे विचलित नहीं होते.
ईश्वर के प्रति जिनकी श्रध्धा मजबूत है वे जानते हैं कि हमारे आस पास जो भी हो रहा है उसके पीछे कोई तो मकसद अवश्य है. कोई अपने पूर्व जन्मोंके कर्मों का भुगतान कर रहा है , कोई नए कर्मों की लकीरें खिंच रहा है तो कोई पिछले जन्मोके कर्मों से बाहर आने का तरीका खोज रहा है.
एक जीव, एक मानव की हैसियतसे जब हम खुदको दूसरों के साथ एक या दूसरे प्रकार से जुडा हुआ पाते हैं और जब उन के व्यवहार से और कर्मो से, प्रभावित हो कर दु:खी होते हैं तब हम अपने खुद में मौजूद 'आत्मशक्ति' को भूल जाते हैं. आत्मा की शक्ति इतनी मज़बूत है कि वह हमें कोई भी बाहरी तत्त्वों के प्रभाव से अलिप्त रखने की राह दिखा सकती है. लेकिंन हमने अपनी खुद के आत्मा की आवाज़ को सुनने का कभी भी प्रयास नहीं किया. लेकिन वहां तक पहुँचने के लिए पहले हमें खुद अपने आप को पहेचानना होगा. रास्ता लंबा ज़रूर है, कठीन भी है ; लेकिन हमने शुरू करनेका प्रयास भी तो नहीं किया !
हम सब ईश्वरको जानने के लिए कितने जन्मो से सारा जीवन जीते आये हैं. अभी तक जान नहीं पाए. इसका एक कारण यह है कि हमने अब तक खुद अपने आपको पहचान ने का प्रयास ही नहीं किया. कई साधू, संत, महात्मा कह गए कि "ईश्वर खुद हमारे अन्दर बैठा है ", लेकिन कई जन्मोसे हम उन्हें बाहर ही खोजते रहे. तो क्यों न हम इस जन्म में खुद अपने को पहेचान ने की कोशीश करें ? इसी रास्ते पर चलते, चलते हम एक जन्म में जरुर उसे समज सकेंगे क्यों कि तब हमने खुद अपने आपको जान लिया होगा शायद यह एक कारण हो सकता है कि उपनिषदों के चार महावाक्यों में से एक आध्यात्मिक मार्ग के साधक को सिखाता है : "अहं ब्रह्मास्मि"..
मन-मंदिरमे शान्ति की प्रतिमा बिठाएं
जो जीवन-शैलीके साथ जी रहे हैं,
नीतिके जो मार्ग थे उनसे दूर हो चले हैं
औरों के प्रति जो द्वेष-भावसे जी रहे हैं
इसी लिए तो हम सब दू:खी हैं
भगवानकी प्रतिज्ञा
आइए, पहले हम सून लें कि भगवानने हम सबके लिए क्या प्रतिज्ञा की है:
“मेरे मार्ग पर पैर रखकर तो देख,
तेरे सब मार्ग खोल ना दूं तो कहना.
मेरे लिए खर्च करके तो देख,
कुबेरका भण्डार खोल ना दूं तो कहना.
मेरे लिए कडवे वचन सुनकर तो देख,
कृपा ना बरसे तो कहना.
वर्तमानके झोलेमें हमारा योगदान
हमारा हाथ थामकर पहुंचाएगा मोक्ष तक
हमें मिला हुआ जीवन बिताने हम आये हैं यहाँ तो जुछ कर के जायेंगे,
वर्तमानके झोलेमें हमारा योगदान कर के जाएंगे.
कर्तव्यनिष्ठ बन कर नीति, आत्मविश्वास और श्रध्धासे जीते जाएंगे
निराश और हारे हुए लोगोंको उनके हाथ पकड़ कर मानवताके रास्तों पर चलते जाएंगे
“सिर्फ धैर्य-हिन् जीवन जीने” के बजाय, देश, समाज और परिवारोंके लिए कुछ करके जाएंगे
कल हम जन्मे, आज जी लिये और कल गुज़र जायेंगे, तब साथमें क्या ले कर जायेंगे?
इस जीवनके उस पार इंतज़ार कोई कर रहा है हमारा, वोह पूछेगा: “क्या पाया, इस जीवनमे?”
“सिर्फ जी लिये या कुछ हांसिल किया, या फिर आये खाली हाथ?”
देवों के देव, महा देव,
जो मौजूद थे जब हम नहीं थे,
कितनी ही पीढियां आती रहे, जाती रहे.
जो बिराजमान है ऐश्वर्य की उस ऊँचाई पर
जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते.
उस परम ‘कल्याण तत्व’ को हम शाष्टांग प्रणाम करें ,
इश्वर भी भला ऐसी खिलवाड़ करते हैं क्या?
जब तूने मुझे इस धरती पर भेजा था
तब हाथमे सिर्फ एक पर्चा थमा दिया था.
“तुम्हारे पूरे जीवनकी कुंडली इसमे मिलेगी” तुमने कहा था,
“जैसे जैसे बड़े होते जाओगे, तब पढ़ते रहना” यह भी कहा था.
मैंने चाहा था मेरे पूरे जीवन की कहानी उसमे मैं पढ़ पाउँगा.
लेकिन माँ ने मना किया था: “रोज पढ़ा नहीं करते, ये विधाता के लेख हैं.”
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