उनको हम ‘ईश्वर’ क्यों न कहें ?

Sep 28, 2019 08:15 PM - Harish Panchal

1045


उनको हम ‘ईश्वर’ क्यों न कहें ?

 

हम सब अपने उतार-चढावका, आवन-जावनका समय और कारण साथ ले कर आते हैं

इसे हम ‘जन्म-कुंडली’ अथवा विधाताकी लिखावट जैसे शब्दोंसे पहेचानते आये हैं

किसे कब विलीन होना है, किसका समय आ चुका है, किसको अपनी करनी छोड़ कर जाना है

ये सब बातें जिसको पता है उसे हम ‘भगवान’ शब्द से जानते हैं एक ही सर्वोपरि शक्ति

 

जैसे हम सब जीवों का भविष्य होता है, ठीक उसी प्रकार हरेक देशका भी भविष्य होता है

कौनसे देशमे, कौनसी पार्टियां कितने उलटे-सीधे, गोल-माल, भर्ष्टाचार-अत्याचार करके ऊपर उठी हैं

कौनसे देशका पापों का घडा भर चुका है, किसे गिरना है और किस सात्विक देशको ऊपर उठाना है

ये सब बातें उस ‘ईश्वर’ को पता है क्यों कि वोही ‘धर्म’-‘अधर्म’ में धर्मके पलड़े को उठाये रखता है

 

‘सोने की चिड़ियाँ’ जैसे भारत को जिन्होंने नोंच, नोंच कर खाया, बेरहमी से लूटा वे सिर्फ विदेशी नहीं थे

वे भी नापाक हरकतों में सामिल थे जिन्हें हमने ‘अपना’ माना था, जो परदे के पीछे गैरों से मिले हुए थे

उन सबके पापों का घड़ा भरता गया, भरता गया, और जब छलकने लगा तब सुदर्शन चक्र गतिमान हुआ:

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।  अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम् ।।4.7।।“

 

और वे आये, दसों अवतारके युग बित चुके थे फिर भी वे आये और ‘मोदी’ के रूप में प्रगट हुए

“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।  धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।।4.8।।“

वर्तामान के ‘दूर्योधनों’ को बे-नकाब किया, आतंकीओं को नाकाम किया, और भारत को ऊपर उठाया

“हरेक युगमें मैं आता हूँ” उस वचन को प्रमाणित किया; ‘शांति, नीति और धर्म’ की मशाल ले कर चल पड़े

 

वर्त्तमान युगके हे सह्मार्गीओं, ईस ‘नरेंद्र’ में हम क्यों ईश्वरका रूप देख नहीं पा रहे हैं, बताइए

स्वतंत्रता मिलने के बाद, दुनियामे भारतको किसने सन्मान से देखा था? कितनों ने सन्मान दिया था?

आज दुनियाके अक्सर देशोंमे यह आलम है कि “भारत’ की और देखनेके लिए आँखे ‘ऐश्वर्य’ से झुक जाती है

आध्यात्मिक शक्तिका कोई आकार नहीं होता. भटके हुओं को राह दिखा सके, ईश्वर उसीमें जा कर बैठ जाते हैं

अब बताइए, “उनको हम ‘ईश्वर’ क्यों न कहें ?”

‘जीवन-मूल्यों’ जैसी कोई चीज़ बाकी बची है क्या ?

Dec 06, 2019 10:15 PM - हरीश पंचाल - ह्रदय

जीवन कि सिढियो से प्रगति की ऊन्चाइऑ को हांसिल करने के बजाय, हम दिन-प्रतिदीन नीचे और नीचे ही गिरते जाते हैं. पीढ़ीओं से गिरे हुए जिन संस्कारों के साथ हम नया जन्म ले कर आते हैं, वे निम्नतर संस्कार प्रत्येक जन्म में और नीचे गिरते रहते हैं. जीवनके मूल्यों का अवसान हो चूका है और फिर भी हम हमेशां मरते रहते हैं, जब भी कोई बुरी सोच को पालते हुए निंदनीय कार्य करते हैं. ऊपर से नीचे तक सब गिरे हुए हैं.

1132

Read more

आइए हम सब हमारे भिष्म पितामहके साथ हो लें

Sep 28, 2019 08:29 PM - Harish Panchal

कोई एक ऐसी हस्ती कई युगोंके बाद, कई सालोंके बाद इस पृथ्वी पर जन्म लेती है

जिसकी सोच इतनी गहेरी, ऊंची और इतनी गहन होती है जो सभी मुश्किलोंके सुझाव ला सके,

जिसकी निर्णायक शक्ति इतनी तेज़, इतनी सही दिशामे होती है, और कभी डगमगाती नहीं,

737

Read more

२०२० की सुबहमे आइए, हम एक-जूट हो जायें  

Dec 31, 2019 11:14 PM - Harish Panchal - Hriday

२०२० के नये सालकी

चौकट पर हम आ खड़े हैं.

हमारा धेयेय क्या है,

हमें कहाँ जाना है,

978

Read more

दिया जलता रहे साल भर 

Oct 27, 2019 11:42 PM - Harish Panchal

२०७६ के नए वर्षकी ये सभी शुभ कामनाएं

आप सभी के लिए साकार हों ऐसी प्रार्थना.

718

Read more

आइये, हम भी अपनी Private Bank बनायें

(सोचिये हम कहाँ जा रहे हैं !)

Mar 09, 2020 11:09 AM - Harish Panchal - Hriday

जीवनमे अमीर होना है तो अपना बैंक खोलो

पांचसौ, हज़ार, लाख, दस लाख  को छोडो

लालसाओं को ऊंची रखो, करोड़ों की सोचो

नौकरी में क्या रखा है, लोगों को नौकर रखो

खुदको बड़ा दिखानेको औरों को नीचा दिखाओ

फ्रेंड्स बनाओ, अपना सर्कल बढाओ, नेटवर्क बढाओ

1017

Read more

Comments

{{commentsModel.name}}
{{commentsModel.name}}   ADMIN   {{commentsModel.updatets | date: 'MMM d, y h:mm a' : '+0530' }}

{{commentsModel.comment}}

No Comments.