जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वे कहाँ है...?
देशमे कई कितने चुनाव आते रहे, अलग, अलग पक्षों के लोग लड़ते रहें, एक दूसरेसे झगड़ते रहे, मारते रहे, मरते रहे, सरकार बनाते रहे, विपक्ष बनाते रहे, आम जनताके पैसोंको लूटते रहे, ढेर सारे – लाखों, करोड़ों रुपये अपनी तिजोरिमे जमा करते रहे. कौन था, इनमेसे जिसके हृदयमे देशका प्रेम समाया था? आम जनताका हीत, उनके दूख-दर्द, उनकी परेशानियोंका अहेसास था? नेताओंके खजाने भरते रहे, अमीर ज्यादा, और ज्यादा अमीर होते रहे, सामान्य लोग गरीब होते रहे, गरीब थे वे ज्यादा गरीब होते रहे, ‘नीति’ का शब्द dictionary में से गायब हो गया. ‘प्रामाणिकता’ शब्दकी परिभाषा विचार और व्योवहार में अ-प्रामाणिकता’ से होने लगी. लोगोंके हृदयमेसे ‘सद्भावना’ ‘संवेदना’ ‘चाहत’ ‘अनुभूति’ जैसे गुणों और शब्दोंने विदाय ले ली.
आज देखते हैं तो सब के सब अपना खजाना भरनेमें लगे है, हरेक निर्णय लेनेसे पहले “मुजे क्या मिलेगा”, मेरा कितना हिस्सा रहेगा” – और “अगर मुजे कुछ नहीं मिलता तो मै क्यों अपनी शक्ति, पैसे और समय का व्यय करूँ? सगे-स्नेही-समाज भाड़में जायं, मुजे उन सबकी चिंता करने की क्या आवश्यकता है?” यहाँसे सबके दिमागका planning शुरू होता है. सब अपनी, अपनी दौड़में लगे हैं, कोइ भी यह नहीं सोचता कि हमको ईश्वरने इस पृथ्वीपर क्यों भेजा है, हम मानव योनिमे क्यो पैदा हुए है?” कर्मका सिध्धांत हर हालमे अपनी जगह पर कायम है और सबके कर्मोंके फल अवश्य देता रहता है, इस सत्यको जानते हुए भी से किसीको यह विचार क्यों नहीं आता कि “जब कर्मोंके फलों की तलवार गिरेगी तब हमारा क्या होगा”
कई सालोंसे हम इसी माहोलमें जीते आये हैं. और हम एस पायदान पर पहुंचे हैं कि अंदरसे पुकार उठती हुई सुनाई देती है: “और नहीं, अब और नहीं, गमके प्याले और नहीं....” जब मन हमें वास्तविक समयमे ले कर आता है तब याद आता है कि सारे देशमे चुनावका मौसम है. अनगिनत लोग, ‘शठ-बंधन’ बनाके बैठे है और चुनाव लड़ रहे हैं. उनके लिये ‘देश भाड़में जायें भी तो क्या – हमें देश से कोई लेना देना नहीं है.” उन सबको ईश्वरके भेजे हुए मसीहे- नरेन्द्र मोदी को हटाना है. और तब दिलकी गगहेराईसे एक आवाज़ उठती है “जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ है...” आइए, उस दर्द भरी आवाजको सुने, उसमे छिपी हुई फरियाद सुने, और तब तक सुनते रहे जब दिलमेसे यह चीख ना उठे कि : “जला दो. मिटा दो यह दुनिय, मेरे सामने से हटा लो यह दुनिया, यह दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ...-तुम्हारी है तुम ही संभालो यह दुनिया..."
चलो, हम हो लें उनके साथ, करे जो कृष्णके के जैसी बात
जिस देशके प्रधान मंत्री पहले दुनियाकी बड़ी कोन्फरंसमें हाथ बाँधकर, मौन हो कर खड़े रहते थे
आज हमारे प्रधान मंत्री की दहाड़ और मार्गदर्शनके पीछे दुनियाको एक नई दिशा दिखती है.
आज हम इतना ऊपर उठ चुके हैं कि हम ‘Super Powers’ की कक्षामें आ चुके हैं.
अब हमें नीचे नहीं गिरना है. हमने ‘विकासकी मशाल’ पकड़ी है , जो सबको राह दिखानी है
आइए हम सब हमारे भिष्म पितामहके साथ हो लें
कोई एक ऐसी हस्ती कई युगोंके बाद, कई सालोंके बाद इस पृथ्वी पर जन्म लेती है
जिसकी सोच इतनी गहेरी, ऊंची और इतनी गहन होती है जो सभी मुश्किलोंके सुझाव ला सके,
जिसकी निर्णायक शक्ति इतनी तेज़, इतनी सही दिशामे होती है, और कभी डगमगाती नहीं,
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय
आज गुरु-पूर्णीमाँ का पवित्र दिवस है.
आईए, हमारे सबके अंतरात्मा में बैठे हुए
‘परम गुरु’ को हम प्रणाम करें,
और संत कबीरजीकी पंक्तियाँ उन्हें सुनाएं”
हम ने चलना सिखा था, चलते गिरना सिखा था,
हम ने चलना सिखा था, चलते गिरना सिखा था,
गिरके संभलना सिखा था और गिरके उठे तो
आसमान में उड़ना भी सिखा था
वसुधैव कुटुम्बकम
यह क्या जगह है दोस्तों, यह कौनसा मुकाम है ..
अहम्, कामनाएं, लालच ने मिलकर पुरखों के दिये संस्कारको रोंदा
सब के ऊपर राज करने निकले थे हम, लेकिन खुद को ही गवाँ बैठे
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